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SHIVA_MAHIMNA STOTRAM (Online Satsang) :
JULy 2020
SHIV MAHIMNA STOTRAM
SWAMI ATMTNANDAJI SARASWATI
शिव महिम्न: स्तोत्र यज्ञ
गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से सावन का पवित्र महीना प्रारम्भ हुआ।
पूज्य गुरूजी ने ६ जुलाई, सावन के प्रथम दिन से आरम्भ कर के जन्माष्टमी पर्व तक शिव-महिम्न ज्ञान यज्ञ करते हुए पूरे सावन माह को शिव की भक्तिमय बना दिया। प्रत्येक दिन का प्रवचन किसी न किसी भक्त के द्वारा प्रायोजित किया गया। प्रवचन के अंत में उनका व्यक्तिगत नाम लेकर पूज्य गुरूजी ने विशेष आशीर्वाद दिएं।
शिव महिम्न स्तोत्रम, शिवजी की महिमा के गुण गान के लिए एक अत्यंत प्रसिद्द एवं आदरणीय प्राचीन रचना है। इसके रचयिता पुष्पदंत नामक एक गन्धर्व थे।
स्तोत्र विषय
इस स्तोत्र के रचयिता श्री पुष्पदन्तजी एक अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान, भक्त-ह्रदय, एवं सुन्दर वाणी के धनी, और संगीत प्रेमी गन्धर्व थे। उन्हें राजा ने बंदी बना लिया था, लेकिन अपने बंदी-गृह में रहने के समय का अत्यंत सुन्दर प्रयोग किया और इस अमर स्तोत्र की रचना की। इसके पुण्य प्रताप से वे न केवल मुक्त हो गए, किन्तु सभी शिव भक्तों को एक अनुपम स्तुति की विधा बता गएं ।
इस स्तोत्र के ३४ श्लोका है, उसके आगे अन्य महात्माओं के द्वारा इसी स्तोत्र की महिमा और फलश्रुति बताई गई है, वे स्तोत्र के अंग रूप से जाने जाते हैं।
श्री पुष्पदंतजी पहले श्लोक में ही अपने अध्भुत ज्ञान का परिचय देते है। वे अपने ज्ञान के कारण निरभिमानता और विनम्रता से युक्त दिखते है। वे एक प्रश्न उठाते हैं की - क्या कोई भी जीव ईश्वर की महिमा गाने या लिखने में समर्थ है? इसका स्पष्ट उत्तर है - नहीं। कहाँ जीव और कहाँ ईश्वर? सबसे मूलभूत बात तो यह है की हम ईश्वर की महिमा को ठीक से जानते तक नहीं हैं? ईश्वर की महिमा अपरम्पार है और हमारी बुद्धि बहुत ही अल्प है, अतः हम उनकी महिमा जानने तक में असमर्थ हैं। अगर ऐसा है तो आप कैसे यह रचना लिखने जा रहे है?
पुष्पदंतजी कहते हैं कि यह सत्य है की ईश्वर की महिमा अपरम्पार और अनिर्वचनीय है, और एक अल्प ज्ञान और अल्प सामर्थ्य वाले जीव की स्तुति यथार्थ परक नहीं हो सकती है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति विनम्रता और निरभिमानता से अपनी अल्प बुद्धि से भी मात्र अपने ज्ञान और अनुभव को लिखता है, तो वो स्तुति निर्दोष हो जाती है, क्योंकि वह व्यक्ति ईश्वर के समग्र गुणों के वर्णन का अभिमान नहीं रख रहा है, बल्कि मात्र अपनी अल्प ज्ञान और अनुभूति बता रहा है, तब वह स्तुति उचित और निर्दोष हो जाती है।
यहाँ शिवजी के वेदांत प्रतिपाद्य तत्त्व निर्गुण निराकार से आरम्भ करके लीला विग्रह तक के तत्त्व को बहुत सुन्दर और अनोखे ढंग से वर्णन करते हैं। यद्यपि प्रत्येक बिन्दु के साथ उनकी अपूर्व विद्वत्ता और अद्भुत समन्वय द्योतित होता है, किन्तु कहीं पर भी उनकी विनम्र भक्त की गरिमा के साथ समझोता नहीं होता है। निश्चित रूप से यह एक अलौकिक रचना है।
प्रत्येक श्लोक के ऊपर व्याख्या के रूप में पूज्य गुरूजी के ४२ प्रवचनों की सम्पूर्ण श्रृंखला youTube चैनल पर उपलब्ध है।