Satsang @ Bhavnagar
24 नवम्बर को पूज्य गुरूजी स्वामी श्री आत्मानंद सरस्वतीजी, आश्रम के महात्मा गण तथा अहमदाबाद के कुछ भक्तों के साथ भावनगर की यात्रा की। भावनगरके श्री केतन भाई दसाडियाने इस यात्राका प्रबंध किया। उनके पिताजी श्री बाबूभाई की विशेष इच्छा रही थी कि परिवार के सभी सदस्य पूज्य गुरुजीके साथ जुड़कर उनसे प्रेरणा एवं आशीर्वाद प्राप्त करें। श्री केतनभाई के विशेष निवेदन पर पूज्य गुरुजीके भावनगर यात्राके लिए स्वीकृति देने पर पूरे परिवार में हर्षोल्लास का वातावरण देखने को मिला। २4 नवम्बर को उनके निवास “श्री रेसीडेन्सी” पर एक सत्संग का आयोजन किया गया।
पूज्य गुरुजीने बताया कि वास्तविक शिक्षा वह होती है जिससे हमारे जीवन के संताप दूर हो सके और हम अत्यंत प्रेरित, उत्साही, प्रेममय जीवन जी सके। जीवन में उतर चढ़ाव आना तो अवश्यम्भावी है, उसे चुनौति की तरह लेते हुए उत्साह से जीना चाहिए। किन्तु मन में कुछ ऐसी गठान होती है, जिससे जीवन में उलझते हुए हतोत्साहित हो जाते है। उसे निपटने के लिए भगवान गीता में बताते हैं की प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में यज्ञ, दान और तप इन तीनों का समावेश होना चाहिए।
यज्ञ एक कर्म करने की एक स्पिरिट होती है, जिसे किसी भी कार्य में समावेश किया जा सकता है। साँस लेनेसे लेकर युद्ध तक में समावेश किया जा सकता है। पूजा, जप, कर्म अदि सबको यज्ञभाव से करना चाहिए। जैसे पूजा या हवन को किसी देवता की ख़ुशी के लिए करते है। वैसे ही सभी कर्म अपने स्वार्थ को किनारे कर के भगवन की ख़ुशी के लिए करते है।
यज्ञ कोई कर्म नहीं है, किन्तु यज्ञ उस साधना को बोलते है जिससे अपने स्वार्थ और स्वकेन्द्रित से कर्म करने से मुक्ति मिलती है। अपने बारे में निश्चिन्त होकर कर्म करने से अपने अंदर की उलजनों से मुक्त होते जाते है। स्वार्थ से मुक्ति और अपनेपन के विस्तार के लिए दान का भी अत्यंत महत्त्व होता है। दान से संकुचिता से बहार आते है।
जीवन में हम अनेको आदतों के वशीभूत होकर जीते हैं , उससे पराधीन होते जाते है। तप उस साधना का नाम है जो हमें अपनी आदतों के सिकंजे से मुक्ति दिलाती है। इतना ही नहीं, तपस्या हमारी संकल्प शक्ति को दृढ़ करके अपने निर्धारित किए हुए लक्ष्य की और बढ़ने के लिए उत्साहित करता है।
जीवन को उत्साही, प्रेममय, जीवंतता से युक्त करने के लिए यज्ञ, दान और तप इन तीनों का समावेश अनिवार्य हैं। इससे न केवल जीवन सुखी और सफल होता है, किन्तु मनुष्य जीवन के धर्म से लेकर मोक्ष तक के सभी पुरुषार्थ की सिद्धि हेतु सक्षम बनते जातें है।
सत्संग के आरम्भ में श्री रूपाबेन ने दीप प्रज्वलन किया तथा श्री केयूर भाई, श्रीमति हर्षिता तथा उनकी माताजी श्रीमति हंसाबेन ने पूज्य गुरूजी को माल्यार्पण एवं आरती करके स्वागत किया। रूपाबेन तथा हंसाबेन में सुन्दर गुजराती भजन प्रस्तुत किया। केयूरभाई की सुपुत्री न्यासा ने सुन्दर कत्थक प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम के शुभारम्भ को और भी जिवंत कर दिया।
तत्पश्चात पूज्य गुरूजी ने प्रवचन में “यज्ञ, दान और तप” का जीवन में महत्त्व बताया। पूरे परिवार ने तथा सत्संग में पधारे हुए भक्तों ने प्रेम व श्रद्धापूर्वक श्रवणपान किया तथा अन्त में प्रसाद वितरण किया गया।पूज्य गुरूजी के आशीर्वाद से समस्त परिवार धन्य हुआ।