DEC 2020
गीता महायज्ञ
(Online)
स्वामी आत्मानन्दजी सरस्वती
~ 21 दिनों के इस सम्पूर्ण भगवद-गीता के महायज्ञ का शुभारम्भ २५ दिसम्बर को गीता जयंती के दिन से हुआ। प्रतिदिन सायं काल ७ बजे यूट्यूब पर इसका प्रवचन प्रकाशित किया जा रहा है।
~ श्रीमद भगवद गीता में १८ अध्याय है। कुल मिलाकर इसमें ७०० श्लोक हैं। गीता महर्षि वेदव्यासजी द्वारा रचित महाकाव्य "महाभारत के शांति पर्व" के अंतर्गत प्राप्त होती है।
~ गीता का उपदेश भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिया था। गीता का उपदेश भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिया था। उस दिन को गीता जयंती जाना जाता है।
~ गीता जयंती हिन्दू पंचांग के अनुरूप मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है।
~ इसका उपदेश सार्वभौमिक और सर्वकालिक प्रासंगिक है। अत :यह एक अत्यंत आदरणीय ग्रन्थ है - जिसके ऊपर भगवान् श्री आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भाष्य भी लिखी है। तथा वेदांत प्रस्थानत्रयी में भी उसे स्थान प्राप्त है।
~ श्रीमद भगवद गीता में १८ अध्याय है। कुल मिलाकर इसमें ७०० श्लोक हैं। गीता महर्षि वेदव्यासजी द्वारा रचित महाकाव्य "महाभारत के शांति पर्व" के अंतर्गत प्राप्त होती है।
~ गीता का उपदेश भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिया था। गीता का उपदेश भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिया था। उस दिन को गीता जयंती जाना जाता है।
~ गीता जयंती हिन्दू पंचांग के अनुरूप मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है।
~ इसका उपदेश सार्वभौमिक और सर्वकालिक प्रासंगिक है। अत :यह एक अत्यंत आदरणीय ग्रन्थ है - जिसके ऊपर भगवान् श्री आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भाष्य भी लिखी है। तथा वेदांत प्रस्थानत्रयी में भी उसे स्थान प्राप्त है।
सम्पूर्ण भगवद-गीता के महायज्ञ” की प्रवचन श्रंखला का प्रारम्भ करते हुए वेदान्त आश्रम, इंदौर के पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने अपनी भूमिका में बताया कि महाभारत युद्ध एक धर्म युद्ध था। इसमें पांडव लोग धर्म के पक्ष वाले थे और कौरव अधर्म के। धर्म, पूरी दुनियाँ को सर्वज्ञ, सर्व-शक्ति के धाम, करुणानिधान ईश्वर को मध्य में रखकर जीवन जीने की कला है, एवं अधर्म एक छोटे, असुरक्षित, अपूर्ण व्यक्ति को मध्य में रखकर जीवन जीने का तरीका है। धर्ममय व्यक्ति उद्दात, धन्य, और सब के कल्याण के लिए जीने वाला होता है, तथा अधर्म के पथ पे चलने वाला व्यक्ति असुरक्षित और सदैव अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए प्रेरित होता है। ये दो प्रकार की जीवन जीने की कलाएँ होती हैं। जब तक ईश्वरीय सत्ता का ज्ञान नहीं होता है तब तक प्रत्येक मनुष्य स्वार्थ से ही प्रेरित होता है एवं अधर्म के पथ का ही अनुसरण करता है। जो भी अधर्म के पथ पर चलता है उसको सदैव चिंता एवं शोक का सामना करना पड़ता है। गीता मूल रूप से मनुष्य को शोक के मुक्ति का पथ बताती है। यह ही भगवद गीता का विषय और प्रयोजन है।
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