SEPT 2020
सम्पूर्ण कठोपनिषद
ज्ञान यज्ञ
(Online)
स्वामी आत्मानन्दजी सरस्वती
~ ४६ दिनों के इस आगामी ज्ञान यज्ञ का शुभारम्भ १ सितम्बर से हुआ। प्रतिदिन सायं काल ७ बजे यूट्यूब पर इसका प्रवचन प्रकाशित किया जा रहा है।
~ कठोपनिषद में दो अध्याय है, और प्रत्येक अध्याय में ३-३ वल्ली (खण्ड ) हैं। कुल मिलाकर इसमें (७१+४८) ११९ मंत्र हैं। कठोपनिषद, यजुर्वेद के अंतर्गत आता है।
~ कठोपनिषद में मृत्यु के देवता यमराज एवं नचिकेत नामक शिष्य का मृत्यु एवं मुक्ति से सम्बद्ध विषय पर संवाद है। इसमें यमराज जी खुद - मृत्यु और मृत्यु के उपरान्त का रहस्य बताते हैं।
~ अतः यह श्राद्ध एवं अधिक मॉस के समय निश्चित रूप से श्रवण और चिंतन योग्य है।
~ यह एक अत्यंत आदरणीय उपनिषद् है - जिसके ऊपर भगवान् श्री आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भाष्य भी लिखी है।
~ कठोपनिषद में दो अध्याय है, और प्रत्येक अध्याय में ३-३ वल्ली (खण्ड ) हैं। कुल मिलाकर इसमें (७१+४८) ११९ मंत्र हैं। कठोपनिषद, यजुर्वेद के अंतर्गत आता है।
~ कठोपनिषद में मृत्यु के देवता यमराज एवं नचिकेत नामक शिष्य का मृत्यु एवं मुक्ति से सम्बद्ध विषय पर संवाद है। इसमें यमराज जी खुद - मृत्यु और मृत्यु के उपरान्त का रहस्य बताते हैं।
~ अतः यह श्राद्ध एवं अधिक मॉस के समय निश्चित रूप से श्रवण और चिंतन योग्य है।
~ यह एक अत्यंत आदरणीय उपनिषद् है - जिसके ऊपर भगवान् श्री आदि शंकराचार्य जी महाराज ने भाष्य भी लिखी है।
सम्पूर्ण कठोपनिषद ऑनलाइन ज्ञान यज्ञ का पहला पड़ाव प्रथम वल्ली के समापन के साथ ९ सितम्बर को पूरा हुआ, इस प्रवचन से दूसरी वल्ली का शुभारम्भ हुआ। इस वल्ली के प्रारम्भ में नचिकेत के पूज्य गुरुदेव यमराज जी महाराज एक अत्यंत महत्त्व पूर्ण विषय की चर्चा से अपने प्रवचन का श्रीगणेश किया। वे हमको श्रेय और प्रेय के विवेक के बारे में बताते हैं जिसके द्वारा नचिकेत जैसी पात्रता प्राप्त हो जाती है। वे बताते हैं की जीवन की प्रत्येक परिस्थिति की प्राप्ति के समय हमारे अंदर दो प्रकार की प्रतिक्रिया संभव हो सकती हैं। एक, हम वो करें जो हमें अच्छा लगे, या वो करें जो कि उचित हो। जो व्यक्ति सदैव उचित के मार्ग और विकल्प का चयन करता है वो एक अच्छा, स्वस्थ, और बुद्धिमान इंसान बन जाता है, और जो मात्र अपनी अहम् की संतुष्टि अथवा अपने योग और क्षेम से प्रेरित होता है वो व्यक्ति अंततः मंद बुद्धि होता चला जाता है और अपने जीवन की समस्त संभावनाओं से च्युत अर्थात गिर जाता है। उसके जीवन की इस असफलता और पतन का कारण ईश्वर अथवा कोई किस्मत आदि नहीं होते है बल्कि वो स्वयं अपने प्रेय पथ के चयन के कारण जीवन की सम्भावनाएं से वंचित रह जाता है।
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