यो देव: खगरूपेण द्रुतं उड्डयते दिवि।
नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमो नम: ।।
जो आकाश में तेज गति से पक्षी रूपसे उड़ान भरता है, उन परमात्मा को हमारा बारम्बार नमस्कार है।
श्री सौम्यकाशीश स्तोत्र – स्वामी श्री तपोवन महाराज
२३ और २४ नवंबर को पूज्य गुरूजी स्वामी श्री आत्मानंद सरस्वतीजी के साथ आश्रम के अन्य महात्मागण तथा गुजरात के कुछ भक्तगणने थोल सरोवर, नल सरोवर तथा भावनगर की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान थोल सरोवर तथा भावनगर के मध्य में और आसपास विविध प्रकार के प्रादेशिक तथा सैलानी पक्षियों का दर्शन किया गया।
इसके अंतर्गत PAINTED STORK, POCHARD, KNOB BILLED DUCK, RUDDY SHELDUCKS, FLAMINGOS, PELICANS, RED-NAPED IBIS, NORTHERN SHOVELER आदि विशेष आकर्षण के केन्द्र रहें।
यात्रा के पीछे महत्वपूर्ण दृष्टि को समजते हुए इस यात्रा का नाम विभूति दर्शन यात्रा नाम दिया।
यह नाम अत्यंत सार्थक है, ईश्वरभक्ति की महिमा तो सभी शास्त्र बताते हैं , किन्तु ईश्वर की महिमा उनकी सुन्दर सृष्टि रूपा कलाकृति से ही ज्ञात होती है। यह अद्भुत सृष्टि और उसमें भी सुन्दर कलरव करते हुए रंगबिरंगी पक्षी विशेष आकर्षण के केंद्र बनते हैं।
गीता के १०वें अध्याय विभूति योग में भी भगवान ने अपने कलात्मक सृजन में विराजमान सुन्दर विभूति का प्रतिपादन किया। सम्पूर्ण सृष्टि हमारी ही विभूति हैं, किन्तु जो भी विषय तुम्हारा ध्यान अपनी और बलपूर्वक आकृष्ट करें, उसे तुम अपने भोग की दृष्टि से नहीं, किन्तु हमारी ही विभूति जानों। यदि अपनी समस्त चिंताएँ, राग-द्वेष थोड़ी देरके लिए किनारे करके देखें, तो यह सृष्टि ही मंदिर बन जाती है, प्रत्येक वस्तु परमात्मा की ही याद दिलाता है। इस दृष्टि से यदि इस जगत को देखा जाएं तो ईश्वर की महिमा और भक्ति से अछूते रहा ही नहीं जा सकता है।
जीवन की व्यस्तता में मनुष्य उसे देखनेमें असमर्थ होता है। इसलिए उसके लिए समय निकाल कर अपने ही आस पास विराजमान पक्षी, पुष्प, समस्त प्रकृति को देखना चाहिए। इस यात्रा साथ में गए सभी भक्तों के लिए एक नई दृष्टि उत्पन्न करनेवाली और विस्मयकारी रही। यह कोई पिकनिक मात्र नहीं होते हुआ अध्यात्म साधना का एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा।