वेदांत आश्रम में दिनांक २३ फरवरी २०२० से पूज्य गुरूजी स्वामी आत्मानंदजी द्वारा सुंदरकांड के मासिक प्रवचनों का शुभारम्भ हुए। पहले प्रवचन में सुंदरकांड के नाम की महिमा और विषय की चर्चा हुई। उसके बाद पहले श्लोक का अर्थ का चिंतन हुआ। अंत में सबने आरती कर प्रसाद ग्रहण किया।
सुन्दरे किं न सुन्दरम्
पूज्य गुरूजी ने सुन्दरकाण्ड नाम की महिमा बताई। अन्य समस्त अध्यायों की तरह इस अध्याय का नाम न तो किसी अवस्था का सूचक है और ना ही किसी स्थान को द्योतित करता है। इस नाम महिमा को महर्षि वाल्मीकिजी से आरम्भ करे अन्य समस्त रामायण ग्रन्थ के रचयिताओं ने स्वीकार किया हैं। इसी अध्याय में हनुमानजी का सुन्दर चरित्र सामने आता है। हनुमानजी को अपने दिव्य सामर्थ्यों का ज्ञान इसी काण्ड के आरम्भ में महा ज्ञानी जाम्बवंतजी के द्वारा कराया जाता है। हनुमानजी की समुद्र के इस पार सुन्दर भूधर से तलाश की यात्रा आरम्भ होती है, जिसका पर्यवसान सुन्दरतम शांति स्वरूपिणी सीताजी के दर्शन में होता है। हनुमानजी की यह यात्रा एक अध्यात्म यात्रा के सामान है, इसमें उन्हें वे सभी विघ्न प्राप्त होते है, जो एक अध्यात्म यात्रा के दौरान संभावना होती है। इसलिए अध्यात्म साधक के लिए विदेश प्रेरणादायी सिद्ध होती है।
इसके अलावा भक्त विभीषणजी की शरणागति का प्रसंग प्राप्त होता है, तथा प्रभु के विशेष गुण शरणागत वत्सलता का भी द्योतन होता है। इन अनेकों कारणों से ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सुंदरे किं न सुन्दरं।
प्रवचन का आरम्भ
प्रवचन का आरम्भ में दास बगीची भजन मंडली के सुन्दर भजनों की प्रस्तुति, हनुमान चालीसा का पाठ तथा राम नाम संकीर्तन किया गया। उसके उपरांत पूज्य गुरूजी का प्रवचन तथा अंत में हनुमानजी की आरती और प्रसाद वितरण हुआ।
यही क्रम प्रति माह के अंतिम रविवार के सत्संग में अनुसरण किया जाएगा। इसके साथ ही पूज्य गुरूजी ने आगे के मासिक सत्संग की तारीख २९ मार्च की घोषणा की। सुन्दरकाण्ड के पाठ की महिमा तो अत्यंत प्रचलित है, किन्तु उसके गहन अर्थ को जानने पर उसकी और भी महिमा समज में अति है।